यह रोग पुरुषों में 40- 50 वर्ष की उम्र के बाद होता है, सभी में नहीं होता हैं ।
कारण
मूत्राशय की थैली के नीचे मूल नलिका के चारों ओर पुरुष गन्धि (प्रोस्टेट) होती है। यह ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ती है त्यों-त्यों हार्मोन्स के असन्तुलन के कारण बढ़ने लगती है तथा मूत्र नलिका को दबाव देकर शनैः शनैः बन्द कर देती है।
लक्षण
प्रारम्भ में पेशाब बार-बार आने लगता है तथा पेशाब करते समय जलन भी महसूस होती है। ज्यों-ज्यों बीमारी बढ़ती जाती है, पेशाब करने में परेशानी होने लगती है। पेशाब के लिए बैठने पर पेशाब आना प्रारंभ होने में एक मिनट का समय लग जाता है। पेशाब की धार पतली होने लगती है तथा जोर लगाने पर धारा और कम हो जाती है। रोग की चरम अवस्था में बूंद- बूंद करके मूत्र आने लगता है तथा रुक जाता है।
चिकित्सा
- गोक्षरू चूर्ण एक चम्मच, वरुण चूर्ण एक चम्मच प्रातः, सायं जल से।
- अश्वगंधा चूर्ण आधा चम्मच, मधुयष्टी चूर्ण आधा चम्मच, आमलकी चूर्ण आधा चम्मच सुबह, सायं दुग्ध के साथ।
बचाव और परहेज बहुत जरूरी हैं
बूँद बूँद कर के पेशाब आता हो तो यह कौनसा रोग है और इसका घरेलू ईलाज़ क्या है?
इसके मुख्यतया दो कारण हो सकते हैं अगर उम्र पचास वर्ष से अधिक है तो पहली सम्भावना है की पौरुष ग्रंथि जिसे प्रॉस्टेट कहते हैं वह बढ़ गई हो और पेशाब के मार्ग को अवरुद्ध कर रही हो।
दूसरा कारण यू॰टी॰आई॰ संक्रमण यानी पेशाब के मार्ग में कहीं भी संक्रमण हो। दोनो ही अवस्था में डॉक्टर से सलाह करनी चाहिए। प्रॉस्टेट बढ़ने का ज़रूर कुछ देशी या घरेलू ईलाज़ हो सकता है। लेकिन सबसे पहले डॉक्टर से सलाह लें।
पचास की उम्र के बाद लगभग पचास प्रतिशत लोगों की प्रॉस्टेट बढ़ जाती है और चिकित्सा विज्ञान इसका कारण आजतक नही खोज पाया है।
यह ज़रूरी नही की जिसकी प्रॉस्टेट बढ़ी हो उन सबको पेशाब की समस्या आएगी।
निष्कर्ष यह है की तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए क्योंकि संक्रमण हुआ तो उसका समय पर ईलाज़ बहुत ज़रूरी है।
प्रोस्टेट(गदूद) से पीड़ित मरीजों को अब ऑपरेशन कराने की जरूरत नहीं है, बल्कि दवाओं से भी यह ठीक हो सकता है।
पूरे जीवनकाल में 70-80 प्रतिशत व्यक्ति इस बीमारी के शिकार होते हैं।
40 वर्ष की आयु के बाद लोगों में यह बीमारी पैर पसारने लगती है। खास बात यह है कि प्रोस्टेट की अनदेखी करने पर किडनी फेल होने की संभावना भी बढ़ जाती है।
प्रोस्टेट(गदूद) से पीड़ित मरीजों को अब ऑपरेशन कराने की जरूरत नहीं है, बल्कि दवाओं से भी यह ठीक हो सकता है। पूरे जीवनकाल में 70-80 प्रतिशत व्यक्ति इस बीमारी के शिकार होते हैं।
40 वर्ष की आयु के बाद लोगों में यह बीमारी पैर पसारने लगती है। खास बात यह है कि प्रोस्टेट की अनदेखी करने पर किडनी फेल होने की संभावना भी बढ़ जाती है।
कब हो सकती है किडनी फेल
प्रोस्टेट का नॉर्मल साइज 18 से 20 ग्राम होता है। हर साल इसके आकार में 2.3 ग्राम की बढ़ोतरी होती है। यदि इस बीमारी से ग्रस्त किसी व्यक्ति का प्रोस्टेट का आकार 100 ग्राम से ज्यादा बढ़ जाए तो यह किडनी के लिए घातक होता है। चार से पांच साल तक इसकी अनदेखी करने पर पीड़ित व्यक्ति की किडनी फेल होने की संभावना बढ़ जाती है।
ऑपरेशन के बाद ये आती हैं दिक्कतें …
ऑपरेशन के बाद, 100 में से 99 लोगों का सेक्स के दौरान वीर्य नहीं निकलता है, बल्की पेशाब की थैली में चला जाता है। दो प्रतिशत लोगों में नपुंसकता के चांसेज भी बढ़ जाते हैं।इसके आलाव ऑपरेशन के बाद यदि इंटरनल स्पींटर कट गया तो यूरिन रुकने की समस्या पैदा हो जाती है।
प्रोस्टेट बढ़ने के लक्षण..
- बार-बार यूरिन का आना
- शौच करते समय यूरिन का टपकना
- यूरिन करने के बाद दोबारा यूरिन की संका होना
- रात में चार से पांच बार यूरिन परित्याग करने के लिए जाना
- यूरिन में खून का आना
- मसाने के अंदर पत्थर का बनना
- किडनी का फेल होना
- काफी देर तक बाथरूम के समय यूरिन का बाहर नहीं निकलना…
- कंपलीकेशन के समय प्रोस्टेट के लक्षण…
- बार-बार यूरिन में इनफेक्शन, खून, दोनों गुर्दो का सूजना
एज ग्रुप के हिसाब से गदूद से पीड़ित व्यक्तियों का आंकड़ा..
- 40 वर्ष की उम्र में 8 प्रतिशत
- 50-60 वर्ष की उम्र में 50 प्रतिशत
- 70 वर्ष की उम्र में 70 प्रतिशत
- 80 वर्ष की उम्र आते-आते मरीजों का आंकड़ा 100 प्रतिशत तक पहुंच जाता हैं.