महादेव, जिन्हें शिव, भोलेनाथ, रुद्र, शंकर आदि नामों से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) में से एक प्रमुख देवता हैं। महादेव की महिमा का वर्णन अनेक पुराणों, शास्त्रों, और धार्मिक ग्रंथों में किया गया है। यहाँ उनके बारे में कुछ मुख्य बिंदु दिए जा रहे हैं:
महादेव और सर्प माला
भगवान शिव गले में सर्पों की माला पहनते हैं पर कभी भी अपनी शांति का त्याग नहीं करते हैं। सर्पों की माला धारण करना अर्थात अनेक मुश्किलों को अपने ऊपर ले लेना। जीवन है तो मुश्किलें तो आएँगी, बस जो उन्हें हँसके सह लेता है, वह शिव बन जाता है और जो उन्हें नहीं सह पाता वह शव बन जाता है। मुश्किलों का समाधान उनसे मुकर जाना नहीं है अपितु मुस्कुराकर सामना करने में है।
विषम घड़ी में आप अपने चेहरे पर मुस्कान लाने की हिम्मत जुटा पाते हैं तो फिर आपकी आंतरिक शांति भंग करने की किसी में सामर्थ्य नहीं। भगवान शिव के गले में सर्पों की माला हमें यह सन्देश देती है कि मुश्किलें तो किसी को भी नहीं छोड़ती बस आप अपनी हिम्मत और मुस्कान कभी मत छोड़ना। गले में विषमता के विषधर होने के बावजूद भी आनंद और प्रसन्नता में जीना भगवान महादेव के जीवन से सीखना चाहिए।
शिवजी का त्रिशूल एवं डमरू
भगवान शिव का स्वरूप देखने में बड़ा ही प्रतीकात्मक और संदेशप्रद है। भगवान शिव के हाथों में त्रिशूल दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों तापों का प्रतीक है। भगवान शिव के हाथों में केवल त्रिशूल ही नहीं है अपितु जो त्रिशूल है, उसमें भी डमरू बँधा हुआ है। त्रिशूल वेदना का तो डमरू आनंद का प्रतीक है। जीवन ऐसा ही है, यहाँ वेदना तो है ही मगर आनंद भी कम नहीं है।
आज आदमी अपनी वेदनाओं से ही इतना ग्रस्त रहता है, कि आनंद उसके लिए एक काल्पनिक वस्तु मात्र रह गई है। दु:खों से ग्रस्त होना यह अपने हाथों में नहीं मगर दुःखों से त्रस्त होना यह अवश्य अपने हाथों में है। भगवान शिव के हाथों में त्रिशूल और उसके ऊपर लगा डमरू हमें इस बात का संदेश देते हैं कि भले ही त्रिशूल रुपी तीनों तापों से तुम ग्रस्त हों मगर डमरू रुपी आनंद भी साथ होगा तो फिर नीरस जीवन भी उमंग और उत्साह से भर जाएगा।
महादेव की महिमा:
त्रिनेत्रधारी (तीसरी आँख के स्वामी): महादेव के मस्तक पर तीसरी आँख स्थित है जो उनका ज्ञान और शक्ति का प्रतीक है। कहा जाता है कि जब शिव अपनी तीसरी आँख खोलते हैं, तो संहार होता है।
नीलकंठ: समुद्र मंथन के समय, जब विष उत्पन्न हुआ, तो देवताओं और असुरों को विष से बचाने के लिए महादेव ने उसे अपने कंठ में धारण कर लिया। इससे उनका कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए।
भोलेनाथ: महादेव को भोलेनाथ कहा जाता है, क्योंकि वे सरल, दयालु और भक्तों के प्रति अत्यंत प्रेमपूर्ण हैं। वे आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों को वरदान देते हैं।
योगेश्वर: शिव योग के आदि गुरु हैं। वे ध्यानमग्न अवस्था में रहते हैं और योग, तंत्र और ध्यान की विधियों के प्रवर्तक माने जाते हैं। उनके द्वारा प्रदत्त शिवसूत्र और अन्य योग ग्रंथ आज भी प्रचलित हैं।
तांडव नृत्य: महादेव का तांडव नृत्य सृष्टि, पालन और संहार का प्रतीक है। यह नृत्य ब्रह्मांडीय चक्र का प्रतिनिधित्व करता है और इसमें सृजन, संरक्षण और विनाश का चित्रण होता है।
वैराग्य और गृहस्थ जीवन: शिव का जीवन अद्वितीय है क्योंकि वे वैराग्य और गृहस्थ जीवन दोनों का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। वे कैलाश पर्वत पर अपनी पत्नी पार्वती और पुत्रों गणेश और कार्तिकेय के साथ निवास करते हैं, और साधुओं, योगियों के आदर्श भी हैं।
गंगा को धारण करना: गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के लिए महादेव ने अपनी जटाओं में धारण किया था, ताकि गंगा का वेग धरती को नष्ट न कर दे।
शिवलिंग: महादेव का शिवलिंग रूप में पूजन किया जाता है, जो उनके निराकार स्वरूप का प्रतीक है। शिवलिंग में उनका आदि और अनंत स्वरूप प्रकट होता है।
शिव महिमा के कुछ प्रसिद्ध स्तोत्र:
रुद्राष्टक: तुलसीदास द्वारा रचित, यह स्तोत्र शिव की महिमा का गुणगान करता है।
शिव तांडव स्तोत्र: रावण द्वारा रचित, यह शिव के तांडव नृत्य और उनकी महिमा का वर्णन करता है।
लिंगाष्टक: यह स्तोत्र शिवलिंग की महिमा का वर्णन करता है।
शिव पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथ:
शिव पुराण, लिंग पुराण, और अन्य धार्मिक ग्रंथों में महादेव की लीला, उनके अवतार, और उनकी भक्ति का विस्तृत वर्णन है। महादेव के प्रति भक्ति और श्रद्धा का अद्वितीय स्थान है और उनके भक्त उन्हें अर्पित किए गए बेलपत्र, धतूरा, और गंगाजल से प्रसन्न करते हैं।
महादेव की महिमा अनंत है और उनके गुणों का वर्णन करना असंभव है। वे संहारक के साथ-साथ सृजनकर्ता भी हैं और उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति से जीवन में शांति, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।