एक बार महाभारत युद्ध के बाद, भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर से कहा —
“राजन! मनुष्य के जीवन में तीन ऋण प्रमुख होते हैं – देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। जब तक यह ऋण नहीं चुकाए जाते, तब तक आत्मा मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकती।”
पितामह ने आगे बताया —
“पितरों का ऋण चुकाने का एकमात्र उपाय है – श्राद्ध और तर्पण। भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्ण अमावस्या तक का काल पितृ पक्ष कहलाता है। इस पक्ष में विधिपूर्वक श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होते हैं और संतान को आशीर्वाद देते हैं।”
करंडु राजा की कथा
प्राचीन समय में राजा करंडु बड़े धर्मात्मा और दानी थे। वे प्रतिदिन ब्राह्मणों, ऋषियों और अतिथियों को भोजन कराते और दान देते थे। एक दिन राजा ने सोचा — “मैं प्रतिदिन देवताओं और साधुओं की सेवा करता हूँ, परंतु अपने पितरों के लिए क्या करता हूँ?”
तब उन्होंने विद्वान ब्राह्मणों से पूछा। ब्राह्मणों ने कहा —
“राजन! जब तक जीवित रहते हुए मनुष्य अपने पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान नहीं करता, तब तक पितरों को तृप्ति नहीं मिलती। उनके आशिर्वाद के बिना संतान, धन और सुख स्थिर नहीं रहते।”
यह सुनकर राजा ने पितृ पक्ष (भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक) में विधिपूर्वक श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण किया।
श्राद्ध पूरा होने पर राजा के पितर प्रकट हुए और बोले –
“पुत्र! तुम्हारे द्वारा किए गए श्राद्ध और तर्पण से हम अत्यंत संतुष्ट हुए। इससे तुम्हारे वंश में धन, ऐश्वर्य, संतान और समृद्धि बनी रहेगी।
जो कोई पितृ पक्ष में श्रद्धा से श्राद्ध करता है, उसके पितर प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद देते हैं। जो ऐसा नहीं करता, उसे पितरों की कृपा नहीं मिलती और जीवन में बाधाएँ आती हैं।”
कर्ण की कथा
महाभारत के कर्ण (दानवीर कर्ण) का जब निधन हुआ, तो वे स्वर्ग पहुँचे। वहाँ उन्हें स्वर्ण और रत्नों का भोजन दिया गया।
कर्ण ने आश्चर्य से पूछा – “मुझे अन्न क्यों नहीं दिया जा रहा?”
देवताओं ने उत्तर दिया –
“पृथ्वी पर रहते हुए तुमने कभी पितरों के नाम अन्न दान नहीं किया। तुमने केवल सोना-रत्न बाँटा।”
तब कर्ण ने प्रार्थना की कि –
“मुझे कुछ समय के लिए पृथ्वी पर भेज दिया जाए ताकि मैं अपने पितरों को अन्न दान कर सकूँ।”
भगवान ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और पितृ पक्ष का समय दिया। कर्ण ने श्राद्ध करके अपने पितरों को अन्न-जल अर्पित किया और तभी उन्हें तृप्ति मिली।
इसी कारण कहा गया है कि श्राद्ध में अन्न और जल का विशेष महत्व है।
? श्राद्ध पक्ष का महत्व
- पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करना आवश्यक है।
- इस पक्ष में जल, तिल, पिंडदान और भोजन दान करने से पितरों की तृप्ति होती है।
- पितृ प्रसन्न होकर संतान को सुख, समृद्धि और लंबी आयु का आशीर्वाद देते हैं।
- इसे “पितृ पक्ष” और “महालय पक्ष” भी कहा जाता है।
श्राद्ध पक्ष केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमारे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान का भाव है।
जब हम श्रद्धा और विधि से पितरों का स्मरण कर उन्हें अन्न-जल अर्पित करते हैं, तो उनका आशीर्वाद हमारे जीवन को सुखमय और सफल बनाता है।
