Description
दुर्गा सप्तशती पाठ
मित्रों जब हम भगवान की प्रार्थना करते है तब कहते है –
त्वमेव माता – हे प्रभू पहले आप माँ हो, च पिता त्वमेव – उसके बाद पिता हो
अतः माँ का स्थान पिता से पहले और बड़ा है। और दुर्गा माँ तो जगत की माता हैं जगत जननी हैं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी उनके चरणो मे शीश झुकाते हैं। दुर्गा माँ की कृपा से ही ब्रह्मा जी सृष्टि की रचना करते हैं, विष्णु जी पालन करते हैं और महादेव संहार करते हैं। माता की कृपा से ही सूर्य प्रकाश देता है और चन्द्रमा शीतलता देता है। अग्नि, पृथ्वी, जल वायु और आकाश माता की कृपा से ही अपना-अपना कार्य करते हैं।
दुर्गा माँ परम दयालू हैं। जब-जब दुष्ट दैत्यों ने देवताओं मनुष्यों साधु-सन्तों को दुख दिया, जब-जब अत्याचार का सम्राज्य बढ़ा, अधर्म का झण्डा लहराया, वेदों, संतों और देवताओं का अपमान हुआ तब-तब दुष्टों को दण्ड देने, अधर्म का नाश करने, तथा देवताओं, साधु-सन्तों, वेदों और की रक्षा करने के लिये माँ जगदम्बा ने अवतार लिया
महिषासुर, चण्ड-मुण्ड, रक्तबीज आदि ऐसे भयानक राक्षस जिनसे सभी देवतागण भी पराजित हो गये, इन राक्षसो को हराना तो दूर उनके सामने टिके रहना भी मुश्किल था। तब माता दुर्गा ने ही उन सभी दैत्यों को मारकर अपने भक्तों को त्रास मुक्त किया। अतः दुर्गा माँ हर असाध्य कार्य को साध्य बना सकतीं हैं। हर असम्भव कार्य को सम्भव कर सकती हैं। माँ दुर्गा को प्रसन्न करने के लिये दुर्गा सप्तषती का पाठ किया जाता।
कार्य प्रणाली
- ग्रह रचना
- सर्वतोभद्रमण्डल
- वास्तु चक्र, योगिनी चक्र
- क्षेत्रपाल
- घृतमातृका, सप्त मातृका
- नवग्रह, षोडश मातृका
- पूजन प्रति दिन
- जप नवार्ण मन्त्र प्रतिदिन
- पाठ
- हवन अन्तिम दिन
- प्रसाद वितरण
- कन्या भोजन
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