Description
उद्यापन पूजा
जब कोई व्रत या अनुष्ठान बिधिवत सम्पन्न हो जाता है, पूर्ण हो जाता है तव उस व्रत या अनुष्ठान का उद्यापन करते है ऐसे करने से उस व्रत का पूर्ण फल हमें प्राप्त होता हो जाता है। जिस उद्देश्य या इच्छा से उस व्रत को किया था वह पूर्ण हो जाता है। अन्यथा फल की हानि होती है। इसलिए जव व्रत पूर्ण हो जाए तो अवश्य ही उद्यापन करा देना चाहिए। जैसे किसी व्यक्ति ने 16 सोमवार का व्रत करने का संकल्प किया तो 16 सोमवार तक व्रत करने के उपरान्त सोमवार व्रत का उद्यापन कर दे तभी व्रत करने का पूर्ण फल प्राप्त होगा|
अधिकतर लोग व्रत के पूर्ण होने से पूर्व ही या उद्यापन करने से पूर्व ही उसके अभीष्ट फल की इच्छा करने लगते है। आपने अक्सर ऐसा देखा होगा कि जैसे किसी व्यक्ति ने अपनी कोई मनोकामना प्रकट की और कहा कि हे मा लक्ष्मी मैं आपके 21 शुक्रवार के व्रत करूगा मेरा अमुक कार्य सम्पन्न हो जाए, और ऐसा संकल्प करके उसने व्रत करना प्रारम्भ कर दिया किन्तु 21 शुक्रवार के व्रत होनं के उपरान्त भी उस व्यक्ति की मनोकामना पूर्ण नही हुई तो वह व्यक्ति न तो व्रत का उद्यापन करता है वल्कि व्रत भी अधूरा छोड देता है। जवकी यह बहुत ही गलत है।
ऐसी परिस्थिति मे आपके इष्ट देव आपकी परिक्षा लेते है कि आप कितने धैर्यवान है? आपने जो मनोकामना प्रकट की है क्या आप उसके लायक है भी या नही? यदि इस परिस्थिति मे आप अपने कार्य सम्पन्न होने तक पूर्ण श्रद्धा भाव से व्रत करते रहे या जितने व्रत करने का आपने संकल्प लिया है उतने व्रतों को पूर्ण करने के उपरान्त उद्यापन करने के वाद भी पूर्ण श्रद्धा भाव से अपने इष्ट की भक्ति करता रहे तो निश्चित ही उसका कार्य सम्पन्न होगा। और यदि आप उद्यापन नही करते है तो निश्चित ही आपकेा अपने इष्ट देव के क्रोधित होने के कारण भयानक हानि का सामना भी करना पड सकता हैै। इष्ट देव के रूष्ट होने के कारण ही जन्म पत्री मे देव दोष वन जाता है।
Reviews
There are no reviews yet.