Description
श्री विष्णु सहस्रनाम पाठ
कलियुग मे विष्णु सहस्रनाम एक औषधि के समान है। क्योकि कलियुग मे केवल नाम की ही महिमा वताई गई है – कलियुग केवल नाम अधरा। सुमिरि-सुमिरी नर पावहिं पारा ।।
विष्णु सहस्रनाम महिमा का उल्लेख गरूण पुराण, मत्स्य पुराण, विष्णु पुराण व पद्मपुराण मे मिलता है। महाभारत के अनुशासन पर्व के 149वंे प्रकरण मे युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से पूछा कि – किमेकम दैवतम लोके, किमवाप्येकम परायणम्।। अर्थात युधिष्ठिर कहते है हे पितामह तीनो लोकों का स्वामी कौन है जिसकी शरण मे जाने से मन शान्त हो जिसकी सेवा करने से सांसारिक बधनो से मुक्ति मिले। तव युधिष्ठिर के पूछने पर भीष्म पितामाह ने विष्णु सहस्रनाम की महिमा वताते हुए कहा कि हे युधिष्ठिर! मन, वचन और कर्म से जो भगवान विष्णु की सेवा आराधना करता है या विष्णु सहस्रनाम का पाठ करता है, वह संसार के सभी बन्धनो से मुक्त हो जाता है। उसे मन और हृदय मे परम शान्ति की अनुभूति होती है। उसके सारे शोक दूर हो जाते हैं जिसके कारण मन प्रसन्न रहता है। विष्णु सहस्रनाम महाभारत के पंचरत्नो मे से एक है।
आयुर्वेद के आचार्य चर्क ने भी चर्क संहिता मे कहा है कि विष्णु सहस्रनाम के निरंतर पाठ करने से सभी रोग समूल नष्ट हो जाते हैं। सभी पाप भस्मीभूत हो जाते है। शंकराचार्य, माधवाचार्य, रामानुजाचार्य आदि ने भी विष्णु सहस्रनाम की के महत्व को बताया और इस पर अपने-अपने भाष्य लिखे।
विष्णु सहस्रनाम मे ही इसके महत्व के वारे मे लिखा है कि जो भी प्राणी इसका पाठ करता है या भक्ति भाव से सुनता है उस मनुष्य का इस लोक मे कभी कोई अशुभ नही होता। इसका पाठ करने वाला ब्राम्हण विद्यावान होता है। क्षत्रिय बलवान होता है। वैश्य धनवान होता है। और शूद्र गुणवान होता है। विष्णु सहस्रनाम का विधिवत अनुष्ठान करने से सभी दोष दूर हो जाते हैं। लक्ष्मी माता की कृपा अर्थात धन प्राप्त करने का यह सर्वश्रेष्ठ उपाय है। यदि विवाह मे बिलम्व हो रहा हो, नौकरी मे बाधा आ रही हो, कुण्डली मे कोई ग्रह नीच या शत्रु गृही हो, अथवा कोई दुर्योग हो जैसे – मार्केश योग, गुरूचाण्डाल योग, केमद्रुम योग, विष योग आदि हो तो श्री विष्णुसहस्रनाम के पाठ से निश्चित ही लाभ मिलता है। सन्तान न होरही हो तो विष्णु सहस्रनाम का पाठ करे अवश्य ही योग्य और श्रेष्ठ सन्तान होगी।
कार्य प्रणाली
- नवग्रह, सप्तमातृका, षोडश मातृका,
- कलश, गणेश गौरी वास्तु आदि
- पूजन, स्तुती
- जप द्वादश अक्षरी मन्त्र
- पाठ प्रारम्भ
- हवन, आरती
- प्रसाद वितरण
- ब्राह्मण व कन्या भोजन
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