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शतरूद्री पाठ
भगवान वेदव्यास जी ने अर्जुन को इसकी महिमा बताते हुए कहा कि – हे पार्थ! वेद सम्मित रूद्री के सौ पाठ अर्थात शतरूद्री का पाठ परम पवित्र तथा धन यश और आयु की वृद्धि करने वाला है। इसके पाठ से सम्पूर्ण मनोरथों की सिद्धि होती है। यह पवित्र समस्त किल्विषों का नाशक, सभी पापों का निवारक तथा सब प्रकार के दुख और भयों को दूर करने वाला है । जो सदा शिव की भक्ति मे उद्यत रहकर शतरूद्री पाठ का अनुष्ठान करता है, उससे प्रसन्न होकर भगवान त्रिलोचन महादेव शिव उसकी समस्त उत्तम कामनाओं को पूर्ण करते हैं।
याज्ञवल्क्य जी ने शतरूद्री को अमृतत्व का साधन कहा है – शतरूद्रियेणेत्येतान्येव ह वा अमृतस्य नामानि। महर्षि आश्वलायन ने ब्रह्मा जी से सुनकर शतरूद्री का अनुष्ठान किया और कैवल्य पद को प्राप्त किया जोकि अन्य किसी भी विधान से सम्भव नही है।
रूद्र देवता को स्थावर, जंगम, सर्वपदार्थरूप, सर्ववर्णरूप, सर्वजाति, मनुष्य-देव-पशु पक्षी वनस्पतिरूप, पृथ्वी, जल, आकाश, वायु और अग्नि स्वरूप मान करके सर्वात्मभाव सर्वान्तर्यामित्व भाव सिद्ध किया है। इस भाव से साधक जीवन मुक्त हो जाता है। शतरूद्री के पाठ से मनुष्य का शुभाशुभ कर्मों से उद्धार हो जाता है। शतरूद्री के पाठ से असाध्य व्याधि की शान्ति होती है। अचल लक्ष्मी व सन्तान की प्राप्ति होती है। सन्तान संस्कारी और आज्ञाकारी होती है। वंश का विस्तार होता है मनवांछित फल कि प्राप्ति होती है। बुद्धि की जड़ता दूर होती है। इच्छित वर की प्राप्ति होती है। प्रेतबाधा, कालसर्प दोष, पितृबाधा आदि से भी मुक्ति मिलती है। साधक जीवन पर्यन्त सुख भोग कर अन्त में मोक्ष को प्राप्त करता है।
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