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Pradosh Poojan – प्रदोष पूजन

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प्रदोष व्रत भगवान शिव के मुख्य व्रतो मे से एक है जोकि बहुत ही शुभ फल दायक माना जाता है। इस व्रत को कोई भी स्त्री-पुरूष कर सकता है इस व्रत के प्रभाव से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। प्रदोष व्रत करनें से भगवान शिव अतिशीघ्र प्रसन्न होते है।

टीम : 1 व्यक्ति

नोट: टीम के आने-जाने व रहने का व्यय आयोजक को करना होगा।

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    प्रदोष पूजन

    हर महीने की त्रियोदशी तिथि को प्रदोष ब्रत किया जाता है। इस व्र तमे पूर्णबिधि बिधान से भगवान शिव की पूजा की जाती है। हिन्दी महीने के अनुसार एक माह मे दो पक्ष होते हैै। शुक्लपक्ष तथा कृष्ण पक्ष और हर पक्ष मे त्रियोदशी होती है इस प्रकार एक महीने मे दो त्रियोदशी होती है

    त्रियोदशी केे दिन पूरा दिन व्रत करके प्रदोष काल अर्थात सूर्यास्त से एक घडी ;लगभग 48 मिनट पहले स्नान आदि से निबृत होकर साफ सफेद रंग के वस्त्र धारण करके पूर्व दिशा की ओर मुख करके ऊन या कुश के आसन पर बैठ कर भगवान शिव की आराधना करें।

    प्रदोष व्रत स्वास्थ्य की दृष्टि से अति उत्तम है। इस व्रत को करने वाला व्यक्ति बडे से बडे से भी मुक्त होकर सुख-पूर्वक जीवन यापन करता है। प्रदोष व्रत करने वाले को मनवांछित फल की प्राप्ती होती है, शत्रुओ का नाश होता है निर्मल मन और दोषरहित बुद्धि की प्राप्ती होती है।

    ध्यान रहे यह व्रत निर्जला रख जाता है लेकिन यदि आप निर्जला नही रख सकते तो जल व फलाहार भी लेसकते है

    प्रदोशव्रत के लाभ : अलग- अलग वार के अनुसार प्रदोष व्रत के अलग-अलग लाभ है।

    • रबिवार के दिन पडने वाले प्रदोष व्रत से आयु बृद्धि होती है तथा अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है
    • सोमवार के दिन पडने वाले प्रदोष व्रत से आरोग्य प्राप्त होता है तथा सभी मनोवांछित कामनाओ की पूर्ति होती है
    • मंगलवार के दिन प्रदोष व्रत करने से रोगो से मुक्ति मिलती है व भूमि भवन का लाभ मिलता है
    • वुधवार के दिन प्रदोष व्रत करने से सभी मनोकामनाओ की पूर्ति होती है कार्य व्यापार मे बृद्धि होती है
    • गुरूवार के दिन प्रदोष व्रत करने से शत्रुओ का नाश होता है तथा आयु-आरोग्य की प्राप्ती होती है मान-सम्मान बढता है
    • शुक्रवार को प्रदोष पूजन करने से सौभाग्य की प्राप्ती होती है तथा दाम्पत्य जीवन मे सुख- समृद्धि प्राप्त होती है
    • शनिवार के दिन प्रदोष व्रत करने से संस्कारी सन्तान की प्राप्ती होती है। सरकार से लाभ मिलता है।
    • इस व्रत को 5 बर्ष 7 बर्ष या 12 वर्षों तक रख कर उद्यापन करना चाहिए