Moorti Sthapna – मूर्ति स्थापना

Moorti Sthapna – मूर्ति स्थापना

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मान्यता है कि घर मे मन्दिर सकारात्मक ऊर्जा कर केन्द्र होता है जोकि घर से नकारात्मक शक्तियों को दूर करता है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार मन्दिर मे हमेशा प्राण प्रतिष्ठा करके ही मूर्ति की स्थापना करनी चाहिए। घर का पूजा घर दोषपूर्ण नही होना चाहिए

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मूर्ति स्थापना

मान्यता है कि घर मे मन्दिर सकारात्मक ऊर्जा कर केन्द्र होता है जोकि घर से नकारात्मक शक्तियों को दूर करता है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार मन्दिर मे हमेशा प्राण प्रतिष्ठा करके ही मूर्ति की स्थापना करनी चाहिए। घर का पूजा घर दोषपूर्ण नही होना चाहिए

एक सामाजिक मन्दिर और एक घर के मन्दिर मे काफी अन्तर होता है। यदि घर मे मन्दिर है तो उसमे मूर्ति कभी भी बडी नही रखनी चाहिए। शिव पुराण के अनुसार घर मे अंगुष्ठ प्रमाण से बडी अर्थात एक अंगूठे से बडी मूर्ति नही रखनी चाहिए। किन्तु अधिकतर लोग बड़ी सी मूर्ति लाकर घर मे स्थापित कर लेते है। जिससे कि वास्तु दोष बढ़ जाता है ऐसी स्थिती मे मूर्ति की पूजा का कोई फल नही मिलता । अतः मूर्ति पूजा का पूर्ण फल पाने के लिए मूर्ति की विधिवत प्राण प्रतिष्ठा करानी चाहिए।

मूर्ति धातु या पत्थर की होनी चाहिए। मिट्टी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा नही होती है तथा उसे अधिक समय तक घर मे रखना भी नही चाहिए। शास्त्रों के अनुसार मिट्टी की मूर्ति केवल एक वार या अधिक से अधिक एक माह की पूजा के लिए ही होती है उसके वाद उसका विसर्जन कर देना चाहिए। धातु या पत्थर की मूर्ति की पूजा बिधि बिधान से की जाती है। इस प्रतिमा मे जान डालने की प्रक्रिया को ही प्राण प्रतिष्ठा कहते है। यह क्रिया मूर्ति को जीवंत कर देती है। जिससे कि यह हमारी विनती को सुनकर हमारे मनोरथों को पूर्ण करती है
मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व मूर्ति को दूध, दही, गंगाजल, गाय के घी, शहद, शकर, पंचामृत आदि मे स्नान करायें फिर साफ मुलायम वस्त्र से मूर्ति को पोंछे फिर सुन्दर वस्त्र पहनायंे। मूर्ति को आसन पर स्थिापित करें, फिर पुष्प, पुष्पमाला, इत्र आदि अर्पित करें। रोली चन्दन आदि का तिलक करें, धूप दीप प्रज्ज्वलित करें फिर फल, मिष्ठान और भोजन का भोग लगाएं। जिस देवी या देवता की मूर्ति हो उसके वीज मन्त्रों का जप करें उसके स्तोत्रांे और सूक्तो का पाठ करे। फिर संक्षिप्त या विस्त्रित जैसी व्यवस्था हो वैसा हवन करे, फिर तर्पण करे, फिर मार्जन करे, आरती करे फिर सभी को प्रसाद वाॅटें। संभव हो तो भण्डार आदि भी करे अन्यथा कन्याओं ब्राह्मणों और गरीबों को अवश्य भोजन करायें
प्रति दिन सुबह शाम भगवान की आरती करें

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